प्रारंभिक विद्यालयी शिक्षा में बहुभाषिकता की आवश्यकता विशेषकर जनजातीय बच्चों की शिक्षा के संदर्भ में एक शिक्षक से अपेक्षा
प्रकाशित 2024-11-19
संकेत शब्द
- राज्य और राष्ट्रीय भाषा,
- भाषाई और सांस्कृतिक बंधन,
- शिक्षा का अनुकूलन
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सार
भारत में बहुभाषिकता एक वास्तविकता है, और यह विशेष रूप से जनजातीय बच्चों की शिक्षा में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। जनजातीय समुदायों के बच्चों को जब मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल किया जाता है, तो उनके लिए भाषा एक बड़ी बाधा बन सकती है। अक्सर इन बच्चों की मातृभाषा और राज्य या राष्ट्रीय भाषा के बीच एक खाई होती है, जो उनकी सीखने की क्षमता और शिक्षा में भागीदारी को प्रभावित करती है। ऐसे में, प्रारंभिक विद्यालयी शिक्षा में बहुभाषिकता को शामिल करना एक आवश्यक कदम बन जाता है, ताकि ये बच्चे अपनी मातृभाषा में समझ सकें और धीरे-धीरे अन्य भाषाओं में भी दक्षता प्राप्त कर सकें।
इस संदर्भ में, शिक्षक की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह बहुभाषिक शिक्षा पद्धतियों को अपनाए, जिससे जनजातीय बच्चों को भाषाई और सांस्कृतिक बंधन से मुक्त किया जा सके और वे आत्मविश्वास के साथ शिक्षा में भाग लें। शिक्षक को बच्चों की मातृभाषा में शिक्षा देने के साथ-साथ उन्हें अन्य भाषाओं में संवाद स्थापित करने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए। इसके अलावा, शिक्षक को बच्चों के समुदाय की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को समझकर शिक्षा की प्रक्रिया को अनुकूलित करना चाहिए।