खंड 32 No. 02 (2011): भारतीय आधुनिक शिक्षा
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लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की शैक्षिक विचारधारा

प्रकाशित 2024-11-25

संकेत शब्द

  • शिक्षा और आत्मनिर्भरता,
  • देशभक्ति

सार

इस आलेख में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की शैक्षिक विचारधारा का विश्लेषण किया गया है, जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन और भारतीय समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रही। तिलक ने शिक्षा को समाज की जागरूकता, स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना। उनके विचारों में एक ओर जहां शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व निर्माण और आत्मनिर्भरता था, वहीं दूसरी ओर उन्होंने भारतीय समाज के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के मॉडल का समर्थन किया।

तिलक के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान की प्राप्ति नहीं था, बल्कि वह व्यक्ति को अपनी पहचान और स्वतंत्रता के प्रति जागरूक करने का एक साधन भी थी। उन्होंने भारतीय बच्चों के लिए विशेष रूप से राष्ट्रीय शिक्षा और स्वदेशी शिक्षा की वकालत की, जिससे वे भारतीय संस्कृति और इतिहास से परिचित हों। इसके अलावा, तिलक ने यह भी कहा था कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य समाज में सुधार लाना, अनुशासन और स्वावलंबन की भावना विकसित करना, और देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देना होना चाहिए।

तिलक का शिक्षा पर दृष्टिकोण इस विचार पर आधारित था कि शिक्षा समाज के विकास के लिए केवल एक साधन नहीं है, बल्कि यह स्वतंत्रता प्राप्ति और देश की शक्ति को पुनः स्थापित करने का एक मार्ग भी है। उन्होंने भारतीय संस्कृति और इतिहास पर आधारित पाठ्यक्रम की आवश्यकता को महसूस किया, ताकि युवा पीढ़ी अपने इतिहास और संस्कृति को जान सके और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ सके। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से भारतीय युवाओं में स्वतंत्रता संग्राम की भावना को जागृत करने का प्रयास किया।