Published 2024-11-25
Keywords
- आधुनिक शिक्षा प्रणाली,
- नैतिक शिक्षा
How to Cite
Abstract
प्राचीन भारतीय शिक्षा दर्शन न केवल अपने समय की सबसे उन्नत और समग्र शैक्षिक प्रणाली थी, बल्कि इसका प्रभाव आज भी आधुनिक शिक्षा के सिद्धांतों और पद्धतियों में देखा जा सकता है। इस अध्ययन का उद्देश्य प्राचीन भारतीय शिक्षा के दर्शन को आधुनिक संदर्भ में पुनः विश्लेषित करना और यह समझना है कि इसकी प्रमुख शिक्षाएं और पद्धतियाँ आज के शैक्षिक वातावरण में कैसे लागू की जा सकती हैं। प्राचीन भारतीय शिक्षा का मुख्य आधार "विद्या" (ज्ञान) और "ज्ञान प्राप्ति का मार्ग" था, जो विद्यार्थियों को एक संपूर्ण और नैतिक जीवन जीने के लिए तैयार करता था।
वेद, उपनिषद, और गीता जैसे प्राचीन ग्रंथों में शिक्षा के बारे में दी गई गहरी और व्यापक अवधारणाएँ, जैसे आत्म-ज्ञान, गुरु-शिष्य परंपरा, और शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास, आज भी प्रासंगिक हैं। इस अध्ययन में यह दिखाया गया है कि कैसे प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धतियाँ, जैसे संवाद, परिग्रह (सकारात्मक सोच), और व्यक्तिगत ध्यान केंद्रित अध्ययन, आज के आधुनिक शैक्षिक ढाँचे में पुनः लागू हो सकती हैं।
इसके अतिरिक्त, यह भी चर्चा की गई है कि वर्तमान में शिक्षा प्रणाली में बढ़ती तकनीकी निर्भरता, नैतिक शिक्षा की कमी, और व्यक्तिगत विकास पर ध्यान न देना, प्राचीन भारतीय शिक्षा के सिद्धांतों के अभाव को दर्शाता है। इस शोध के परिणामस्वरूप यह निष्कर्ष निकलता है कि प्राचीन भारतीय शिक्षा दर्शन को समझकर, हम न केवल शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, बल्कि विद्यार्थियों को एक समग्र और आत्मनिर्भर समाज के सदस्य के रूप में तैयार भी कर सकते हैं।