खंड 32 No. 01 (2011): भारतीय आधुनिक शिक्षा
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व्यर्थ शोध निरर्थक त सिद्धांत और जोखिम में शिक्षा

प्रकाशित 2024-11-25

संकेत शब्द

  • शैक्षिक शोध,
  • निरर्थकता के सिद्धांत

सार

इस आलेख में "व्यर्थ शोध", "निरर्थकता के सिद्धांत" और "शिक्षा के जोखिम" पर चर्चा की गई है। यह अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि कई बार शैक्षिक शोध केवल कागजों तक सीमित रह जाते हैं, और उनका समाज या शिक्षा प्रणाली पर कोई वास्तविक प्रभाव नहीं पड़ता। 'व्यर्थ शोध' वह शोध है जो किसी स्पष्ट उद्देश्य, दिशा या परिणाम के बिना किया जाता है, और इसका शैक्षिक उद्देश्यों के लिए उपयोगिता नगण्य होती है। ऐसे शोधों को निरर्थक माना जाता है, क्योंकि वे केवल समय और संसाधनों की बर्बादी होते हैं।

लेख में "निरर्थकता के सिद्धांत" पर भी विचार किया गया है, जिसमें बताया गया है कि जब शोध का उद्देश्य अस्पष्ट होता है या इसका व्यावहारिक उपयोग सीमित होता है, तो वह निरर्थक सिद्ध होता है। यह सिद्धांत यह भी सुझाव देता है कि शोध को केवल शैक्षिक सिद्धांतों को समझने तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे समाज की वास्तविक समस्याओं के समाधान में उपयोगी बनाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, यह आलेख शिक्षा के जोखिमों पर भी विचार करता है। शोध की गुणवत्ता, उसकी प्रासंगिकता और उपयोगिता सुनिश्चित करना शिक्षा प्रणाली में जोखिम उत्पन्न कर सकता है। जब शोध परिणाम सही दिशा में नहीं जाते, तो यह न केवल शैक्षिक संस्थानों के लिए बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक हो सकता है। लेख में यह भी सुझाव दिया गया है कि शिक्षा में शोध की दिशा और उद्देश्य को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाना चाहिए ताकि वह वास्तविक समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो सके और शिक्षा प्रणाली को सशक्त बना सके।