बच्चों की नजर से देखा जाए तो विद्यालय परिवेश के कितने ही पहलू हैं जो बच्चे के स्वतंत्र चिंतन और सोच की राह में बाधा बन जाते हैं ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या विद्यालयी शिक्षा का परंपरागत ढांचा बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में सहायक है या केवल उसके व्यक्तित्व को पहले से तय एक आकार में डालने की कोशिश मात्र कर रहा है।