Abstract
बाल्यावस्था बच्चों के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इस अवस्था में बच्चों का विकास तीव्र गति से होता है विकास की इस तीव्र अवस्था में बच्चों को शिक्षण पूर्व प्रचलित नीरस शिक्षण विधियों के माध्यम से ही करवाया जाता है। पूर्व प्रचलित शिक्षण विधियों के साथ प्राथमिक एवं पूर्व प्राथमिक स्तर पर खेल विधि से शिक्षण करवाया जाए तो निश्चित ही अधिगम गुणात्मक रूप से प्रभावित होगा। खेल विधि के अंतर्गत बच्चों की रुचि, आकांक्षा, योग्यता एवं आवश्यकता अनुसार क्रियाओं का निर्धारण और पूर्व में ही कर लिया जाता है। पूर्व निर्धारित विषय संबंधी क्रियाओं के माध्यम से बच्चे विषय वस्तु अधिगम के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक एवं संज्ञानात्मक विकास की ओर अग्रसर होता है। खेल विधि के माध्यम से संयोजित शिक्षक संबंधी खेल का आयोजन करवा कर खेल-खेल में मनोरंजन के साथ मौलिक विकास एवं विषय वस्तु के अधिगम की ओर बच्चे को प्रेरित किया जा सकता है। प्राथमिक स्तर के विभिन्न संस्करणों में विविध विषयों का शिक्षण यदि खेल विधि के माध्यम से ही करवाया जाए तो निश्चित ही बच्चों के सर्वांगीण विकास करने में हम समर्थ हो सकेंगे।