Vol. 10 No. 2 (2021): Voices of Teachers and Teacher Educators
Articles

कोरोना महामारी के दौरान विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति एवं बचाव के उपाय : एक विश्लेषण

Published 2024-12-06

Keywords

  • सामाजिक व्यवहार,
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन

How to Cite

कोरोना महामारी के दौरान विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति एवं बचाव के उपाय : एक विश्लेषण. (2024). Voices of Teachers and Teacher Educators, 10(2), p. 148-153. http://45.127.197.188:8090/index.php/vtte/article/view/1791

Abstract

विद्यालय और परिवार जीवनप्रद सामाजिक इकाइयां हैं जो सभी विद्यार्थियों के समग्र विकास के साथ जुड़ी हुई हैं। हमारे विद्यालयों की प्रमुख रूप से उत्तरदायित्वयह है कि वे विद्यार्थियों के शारीरिक एवं मनोसामाजिक स्वास्थ्य को प्रोत्साहित करें और इन्हें बेहतर बनाए। विधार्थियों की देखभाल और संरक्षण के लिए अभिभावक, विद्यालय, शिक्षक, परामर्शदाता, आदि की अमूल्य भूमिका होती है। उभरती चुनौतियों के चलते यह आवश्यक हो गया है कि विद्यालय छात्र-छात्रा की मनोवैज्ञानिक अवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करें तथा उनके समग्र कल्याण का ध्यान रखें। कोरोना वायरस जनित (कोविड-19) महामारी ने हमें जैविक, शरीरिक, सामाजिक, आर्थिक (अर्थव्यवस्था), सांस्कृतिक, राजनीतिक, भावनात्मक, मनोस्वास्थ्य, चिकित्सीय और पठन-पाठन के रूप में शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इस महामारी ने दुनिया भर में डर, भय और गंभीर चिंता का वातावरण निर्मित कर माहौल बना दिया है। इससे लोगों में लगातार घबराहट का अनुभव, बेचैनी, तनाव, भय, अनिश्चितता, चिंता, संदेहजनक वातावरण और निराशा, आदि वर्तमान जीवन की बड़ी समस्याएं है। तनाव व चिंता की अवस्था में व्यक्ति में प्रायः सांवेगिक अनुक्रिया, मनोसामाजिक डर, आशंका और घबराहट उत्पन्न होती है, जो भावनाओं के आपस में आदान-प्रदान से कम किया जा सकता है। इससे व्यक्ति में समायोजन एवं विषम परिस्थिति के अनुरूप स्वयं को ढ़ालने की क्षमता बढ़ती है। इस विकट परिस्थिति से उत्पन्न मिश्रित भावनाएं और मनो-सामाजिक तनाव, मानसिक दबाव व चिंता, भावनातमक और व्यवहार संबंधी मुद्दों के साथ भय से बाहर निकलने में मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप उपयोगी सिद्ध होता है। साथ ही, जीवन में सकारात्मक सोच और रचनात्मक क्रियाकलापों को आत्मसाथ कर दबावपर्ण स्थिति से बाहर निकला जा सकता है। इसके लिए हमें दृढ़ इच्छाशक्ति, सहयोग और हम की भावना के साथ प्रयासरत रहने की आवश्यकता है। फलत: कोरोना काल में विद्यालयी शिक्षा और सामाजिक जिंदगी ऑनलाइन हो गई है और आमने-सामने की मुलाकात कम हो गई है। इस प्रक्रिया में बच्चे अकेलापन महसूस करने लगे है और ऐसे में बच्चे अवसाद से ग्रसित हो रहे हैं। अनहोनी की आशंका और दूसरी तरह के खौफ एवं चिंता को जन्म दिया है। लोग अपने प्रियजनों को हमेशा के लिए साथ छोड़ जाने से अकेले रह जाने के दहशत में है। लोग चिंता और व्याकुलता से मानसिक संकट में हैं। अब हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम ऐसे बच्चों की पहचान कर उन्हें समचिुत सहयोग एवं परामर्शप्रदान कर सामान्य जीवन जीने हेत प्रेरित करें|