भारत में समावेशी शिक्षा की अवधारणा एवं विकास क्रम: विभिन्न नीतियों, दस्तावेज़ों एवं अधिनियमों के आईने में
प्रकाशित 2024-12-03
संकेत शब्द
- समावेशी शिक्षा,
- सलमांका सम्मेलन
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सार
पहली बार विशेष शिक्षा के लिए शिक्षक प्रशिक्षण संबंधी योजना 1960 में दृष्टि बाधित बच्चों के शिक्षण योजना हेतु शिक्षक तैयारी की बात की गई। योजना आयोग ने सन 1971 ई. में एकीकृत शिक्षा का प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसके पश्चात भारत सरकार ने दिसम्बर, 1974 में विशेष आवश्यकता (दिव्यांग) वाले बच्चों के लिए एकीकृत योजना प्रारंभ किया। मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं यूनिसेफ़ के सहयोग से 1987 में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए एकीकृत शिक्षा परियोजना (पी.आई.ई.डी.) एकीकृत शिक्षा की प्रयोगात्मक रूपरेखा प्रदान करता हैं। अतंराष्ट्रीय स्तर पर समावेशी शिक्षा के लिए ‘सलमांका सम्मेलन' 1994, मील का पत्थर साबित हुआ जो जून 1994 में स्पेन के सलमांका शहर में आयोजित हुआ जिसमें 92 देशों के प्रतिनिधि व 25 अतंरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भाग लिया। इस सम्मेलन का प्रमखु निर्णय था ‘सभी के लिए शिक्षा, जिसमें बच्चे, यवुा और विशेष आवश्यकता वाले लोगों को सामान्य शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा प्रदान करना।’ सन 1997 में विशेष आवश्यकता वाले (दिव्यांग) बच्चों के लिए एकीकृत योजना को ज़िला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के अर्न्तगत मिला दिया गया। 90 के दशक के अन्तिम समय में (अर्थात 1997) ज़िला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डी.पी.ई.पी.) के अर्न्तगत भारत में समावेशी शिक्षा के दृष्टिकोण को समाहित किया गया, ज़िला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम ने पाठ्यचर्या से संबंधित मखु्य मुद्दों को संबोधित किया, जैसे- ‘कुछ बच्चों की पाठ्यक्रम तक पहुच को कौन से कारक सीमित करते हैं। पूर्ण पाठ्यक्रम का उपयोग करने हेत क्या-क्या संशोधनों की आवश्यकता है, आदि’। भारत में समावेशी शिक्षा के लिए वर्ष 2009 महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इसी वर्ष ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ पारित किया गया, जिसने ‘सभी के लिए शिक्षा’ को संवैधानिक अधिकार प्रदान किया। विशेष आवश्यकता वाले (दिव्यांग) बच्चों के लिए एकीकृत योजना 100 हजार बच्चों को प्रभावित कर पाई थी।